Posts

Showing posts from October, 2021

सरलता का संतुलन

 सब तो सरल ही था किसी ने समय का विचार उड़ा दिया और सब वक्र हो गया भाग भाग के हम  वहीँ पहुंचने लगे  अनंत चक्र के चक्कर में  अपनी सरलता खो के  कल्प सफलता बो के  अचानक आसमान में सितारे ज्यादा हैं  वहीँ से तो आएं हैं  वहीँ तो जाना था  पहुंच गए टिमटिमाने  संतुलन में ही सरलता है  और प्रकृति ही संतुलित है  प्रकृति की वक्रता देखिये  सरल रेखा इस धरती पर खिंच के तो दिखाइए ? फिर कहियेगा  के सब तो सरल ही था।  

जय श्री कृष्णा

Image
                                                    हर बार प्रभू नहीं आएंगे , बस धनूष बाण पकड़ाएंगे | मछ्ली कि आँख बहाना है , जीत का गुर समझाना है | मैंने न कहा के पूज मुझे , संदेशों से हो सूझ तुझे | मेरी प्रतिमा तू मन मे रख , कर्मों से हो न कभी विमुख  | बस यही भेद का दाता है , होने का होना समझाता है |  

जो मैं हूँ

   जो अनुभव मेरे  हैं  तुम्हारे कभी नहीं हो सकते  जो सावन मेरे हैं  तुम्हारे कभी नहीं हो सकते  क्यूके  उन्हे मैं कभी भी दुबारा महसूस कर सकता हूँ  उसी सिहरन के साथ  उन्ही धड़कन के साथ  इसी तरह  वो मेरे हैं  उन्हे मैं चाह के भी  किसी को नहीं दे सकता  और वही तो मैं हूँ  अगर जान सको मुझे  तो बस  सुन और समझ लेना  बाकी का बाकी ही रहने देना  वो बाकी ही मुझे अपने मे रखता है  जब मैं उसमे से निकलता हूँ  तो ही तुम्हें समझ आ सकता हूँ  जितना नहीं समझ पाते हो मुझे  वो  बाकी बचा वही तो है  जो मैं हूँ 

सिर्फ तू इतना बेकार है

   फिर वो अंधकार है  फिर वो विकार है  रोकता है वो मुझे  टोकता है वो मुझे  अयोग्य वो बनाता है  विश्वास को हिलाता है  मजबूरी वो समझाता है  के पहुँच नहीं पाएगा तू  रुक जा समझ जा  नासमझी मुझे मंजूर  के खत्म हो जाऊँ जरूर  रुकना नहीं मंजूर  ये तर्कहीन पुकार है  जो आती बार बार है  सिर्फ तू  इतना बेकार है  सिर्फ तू  इतना बेकार है