सुकून इस बात का है के कुछ पेड़ तो लगाए थे ! देखभाल भी की वो फले फुले, आज भी कुछ बचे हैं बड़ा हुआ तो पता चला के पेड़ बस ऑक्सीजन देते हैं जो खाना पचाने मे काम आता है तो लगा के ऑक्सीजन का करूंगा क्या जब पेट मे खाना ही नहीं रहेगा तो पेट भरने निकल गया पेड़ वहीं रह गए कुछ काट दिए गए कुछ अभी भी ऑक्सीजेन दे रहें हैं और आज भी मेरा खाना ऑक्सीजेन से ही पचता है |
फिर वो अंधकार है फिर वो विकार है रोकता है वो मुझे टोकता है वो मुझे अयोग्य वो बनाता है विश्वास को हिलाता है मजबूरी वो समझाता है के पहुँच नहीं पाएगा तू रुक जा समझ जा नासमझी मुझे मंजूर के खत्म हो जाऊँ जरूर रुकना नहीं मंजूर ये तर्कहीन पुकार है जो आती बार बार है सिर्फ तू इतना बेकार है सिर्फ तू इतना बेकार है
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